देशव्यापी आम हड़ताल को तोड़ने के षड़यंत्र को विफल करो! : तपन सेन
● केन्द्रीय श्रम मंत्री श्री बण्डारु दत्तात्रेय ने 31 अगस्त को प्रातः 9.00 बजे ‘‘मजदूरों की निष्पक्ष आय और सामाजिक सुरक्षा के प्रति एन.डी.ए. सरकार की प्रतिबद्धता’’ के नाम से एक प्रेस बयान मीडिया और प्रेस को भेजा।
● सीटू इस बयान को सोचा समझा ‘‘मिथ्या अभियान’’ मानता है, ताकि विभ्रम पैदा करके 2 सितम्बर 2016 की देशव्यापी आम हड़ताल को तोड़ा जा सके, जबकि सभी श्रेणी के मजदूर एवं कर्मचारी हड़ताल में शामिल होने की तैयारी कर चुके हैं।
● श्रम मंत्री ने केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के न्यूनतम् वेतन में 42ः वृद्धि का दावा किया है। पूरे देश के मजदूरों के लिए वैधानिक न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- से कम नहीं घोषित करने की माँग करने वाले मजदूरों और ट्रेड़ यूनियनों के लिए इसका क्या अर्थ है? उसका अर्थ है कि ‘‘सी’’ केटेगरी के क्षेत्र में न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- और सानुपातिक वृद्धि करके ‘‘बी’’ केटेगरी के लिए रु० 22,320/- तथा ‘‘ए’’ केटेगारी के लिए रु० 26,560/- किया जाना चाहिए। सरकार ने ‘‘सी’’, ‘‘बी’’ और ‘‘ए’’ केटेगरी के लिए क्रमशः रु० 9,100/-, रु० 11,362/- और रु० 13,598/- का प्रस्ताव किया है जो ट्रेड़ यूनियनों की माँग का आधा भी नहीं है। ज्ञातव्य हो कि बी.एम.एस. सहित सभी केन्द्रीय ट्रेड़ यूनियनें संयुक्त रुप से अपनी माँग सरकार के समक्ष पेश की है, और पिछले 5 वर्ष से उठाती आ रही हैं, और अभी हाल ही में 29 अगस्त 2016 को आयोजित न्यूनतम् वेतन सलाहकार समिति की मीटिंग में भी यही माँग पूरे जोर-शोर से उठायी गयी है। केन्द्र सरकार द्वारा भी स्वीकार्य फार्मूले पर आधारित माँग का मजाक कोई भी यूनियन कैसे बर्दाश्त कर सकती है? बी.एम.एस. दबाव में इस मजाक को भी एक ‘‘ऐतिहासिक उपलब्धि’’ मान सकती है, लेकिन अन्य यूनियनें नहीं।
● और इस प्रस्ताव से कौन लाभन्वित हो रहा है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के लिए है, जो कि मंत्री के अपने ही बयान के अनुसार ही लगभग 70 लाख हैं। यदि इसे लागू भी कर भी दिया जाए तो यह देश के कुल गैर-कृषि मजदूरों के 1 प्रतिशत को भी लाभ नहीं पहुँचाऐगा। देश के शेष 99ः मजदूरों के लिए यह पूरी तरह से अर्थहीन है। क्या मंत्री के पास उनको देने के लिए कोई जबाव है?
ट्रेड़ यूनियनें लम्बे अरसे से पूरे देश में न्यूनतम् वेतन को कानूनन् लागू करने की व्यवस्था की माँग करती आ रही हैं। बहुत ही मामूली से वृद्धि वह भी मजदूरों के एक छोटे हिस्से के लिए, को लेकर इतना शोर-शराबा करना, बहुमत श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता नहीं धोखा-धड़ी ही है।
●माननीय मंत्री ने घोषणा की है कि अगले तीन साल तक भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में मालिकान के अंशदान का भुगतान सरकार करेगी। भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की जिम्मेदारी का बोझ सरकारी खजाने पर डालने की क्या आवश्यकता है? लेकिन यह एक सरकार है जिसने काॅरपोरेटस् को करांे का भुगतान न करके सरकारी खजाने को रु० 5 लाख करोड़; और बैंकों से लिए गए रु० 8.5 लाख करोड़ के कर्ज का भुगतान न करके चूना लगाने की इजाजत दे रखी है। सरकार अप्रेन्टिसों की ट्रेनिग के मूल्य का एक हिस्सा मालिकान को भुगातन करती है। और भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की कानूनन् जिम्मेदारी भी अब अगले तीन साल तक के लिए सरकार ले रही है जिसका भुगतान वह अपनी जेब से नहीं सरकारी खजाने से करेगी। इसे नहीं तो किसे सरकारी खजाने की लूट कहा जाए? इन राष्ट्र विरोधी कदमों को ‘जनकल्याण और राष्ट्र निर्माण के लिए कटिबद्धता’ कहना जनता की आँखों में धूल झौंकना ही तो है।
● सीटू को पूरा भरोसा है कि इस प्रकार की धोखा-धड़ी मजदूरों को अपने संघर्ष के रास्ते हटाने में सफल नहीं हो सकती है। हड़ताल जारी रहेगी।
● सीटू इस बयान को सोचा समझा ‘‘मिथ्या अभियान’’ मानता है, ताकि विभ्रम पैदा करके 2 सितम्बर 2016 की देशव्यापी आम हड़ताल को तोड़ा जा सके, जबकि सभी श्रेणी के मजदूर एवं कर्मचारी हड़ताल में शामिल होने की तैयारी कर चुके हैं।
● श्रम मंत्री ने केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के न्यूनतम् वेतन में 42ः वृद्धि का दावा किया है। पूरे देश के मजदूरों के लिए वैधानिक न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- से कम नहीं घोषित करने की माँग करने वाले मजदूरों और ट्रेड़ यूनियनों के लिए इसका क्या अर्थ है? उसका अर्थ है कि ‘‘सी’’ केटेगरी के क्षेत्र में न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- और सानुपातिक वृद्धि करके ‘‘बी’’ केटेगरी के लिए रु० 22,320/- तथा ‘‘ए’’ केटेगारी के लिए रु० 26,560/- किया जाना चाहिए। सरकार ने ‘‘सी’’, ‘‘बी’’ और ‘‘ए’’ केटेगरी के लिए क्रमशः रु० 9,100/-, रु० 11,362/- और रु० 13,598/- का प्रस्ताव किया है जो ट्रेड़ यूनियनों की माँग का आधा भी नहीं है। ज्ञातव्य हो कि बी.एम.एस. सहित सभी केन्द्रीय ट्रेड़ यूनियनें संयुक्त रुप से अपनी माँग सरकार के समक्ष पेश की है, और पिछले 5 वर्ष से उठाती आ रही हैं, और अभी हाल ही में 29 अगस्त 2016 को आयोजित न्यूनतम् वेतन सलाहकार समिति की मीटिंग में भी यही माँग पूरे जोर-शोर से उठायी गयी है। केन्द्र सरकार द्वारा भी स्वीकार्य फार्मूले पर आधारित माँग का मजाक कोई भी यूनियन कैसे बर्दाश्त कर सकती है? बी.एम.एस. दबाव में इस मजाक को भी एक ‘‘ऐतिहासिक उपलब्धि’’ मान सकती है, लेकिन अन्य यूनियनें नहीं।
● और इस प्रस्ताव से कौन लाभन्वित हो रहा है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के लिए है, जो कि मंत्री के अपने ही बयान के अनुसार ही लगभग 70 लाख हैं। यदि इसे लागू भी कर भी दिया जाए तो यह देश के कुल गैर-कृषि मजदूरों के 1 प्रतिशत को भी लाभ नहीं पहुँचाऐगा। देश के शेष 99ः मजदूरों के लिए यह पूरी तरह से अर्थहीन है। क्या मंत्री के पास उनको देने के लिए कोई जबाव है?
ट्रेड़ यूनियनें लम्बे अरसे से पूरे देश में न्यूनतम् वेतन को कानूनन् लागू करने की व्यवस्था की माँग करती आ रही हैं। बहुत ही मामूली से वृद्धि वह भी मजदूरों के एक छोटे हिस्से के लिए, को लेकर इतना शोर-शराबा करना, बहुमत श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता नहीं धोखा-धड़ी ही है।
●माननीय मंत्री ने घोषणा की है कि अगले तीन साल तक भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में मालिकान के अंशदान का भुगतान सरकार करेगी। भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की जिम्मेदारी का बोझ सरकारी खजाने पर डालने की क्या आवश्यकता है? लेकिन यह एक सरकार है जिसने काॅरपोरेटस् को करांे का भुगतान न करके सरकारी खजाने को रु० 5 लाख करोड़; और बैंकों से लिए गए रु० 8.5 लाख करोड़ के कर्ज का भुगतान न करके चूना लगाने की इजाजत दे रखी है। सरकार अप्रेन्टिसों की ट्रेनिग के मूल्य का एक हिस्सा मालिकान को भुगातन करती है। और भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की कानूनन् जिम्मेदारी भी अब अगले तीन साल तक के लिए सरकार ले रही है जिसका भुगतान वह अपनी जेब से नहीं सरकारी खजाने से करेगी। इसे नहीं तो किसे सरकारी खजाने की लूट कहा जाए? इन राष्ट्र विरोधी कदमों को ‘जनकल्याण और राष्ट्र निर्माण के लिए कटिबद्धता’ कहना जनता की आँखों में धूल झौंकना ही तो है।
● सीटू को पूरा भरोसा है कि इस प्रकार की धोखा-धड़ी मजदूरों को अपने संघर्ष के रास्ते हटाने में सफल नहीं हो सकती है। हड़ताल जारी रहेगी।
Sir,am I know that what is next step for poor minimum staffs salary.
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