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Thursday, September 1, 2016

2 सितम्बर आम हड़ताल  हाल के दौर की सबसे बड़ी देशभक्तिपूर्ण कार्यवाही- तपन सेन  

● आज दिन भर में सरकारी और कारपोरेट मीडिया के हमलेवाराना प्रचार के जरिये 2 सितम्बर की अखिल भारतीय हड़ताल के बारे में मुमकिन है कि प्रधानमंत्री मोदी के रणनीतिज्ञ हजार गलतफहमियां फैला ले । बैटल (मोर्चा) जीतने का भ्रम पाल ले । मगर इस विराट विरोध कार्यवाही के मुद्दों की अनदेखी करके यह मुल्क जरूर वॉर (युध्द) हारने की कगार पर पहुँच सकता है । वित्तमंत्री कल की अपनी प्रेस कांफ्रेंस में आभासीय दस्तरखान पर जिन ख्याली पुलावों की प्लेटें सजा रहे थे , श्रमिक संगठनों द्वारा उसे ठुकराया जाना स्वाभाविक था क्योंकि, उनमे चावल जैसे दिखते कंकरों के सिवा कुछ नहीं था । कार्बाइड, वोडाफोन सहित अनगिनत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों चहेते वकील जेटली की उक्तियों में गोयबल्स सशरीर उपलब्ध थे, अपनी उक्ति "झूठ जितना बड़ा होगा उतना ज्यादा स्वीकार्य होगा" के साथ ।
● 2 सितम्बर की मांगो पर सरसरी निगाह डालकर अर्थशास्त्र की बारहवीं कक्षा का छात्र भी समझ सकता है कि यहां सवाल वेतन-भत्ते बढ़वाने के "स्वयंसेवी" माइक्रो-इकोनॉमिक्स का नहीं, समूचे मुल्क की सेहत सुधारने वाले "सर्वसमावेशी" मैक्रो-इकोनॉमिक्स का है । और मैक्रो इकोनॉमिक्स के बड़े सवाल जोर से बोलकर, खंडन करके या अपनी हठ पर अड़कर नहीं, धीमे और मजबूती से उपाय उठाके, रास्ता बदलकर हल किये जाते हैं ।
● यह कहना बिलकुल अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 2 सितम्बर की हड़ताल, हाल के दौर की, सबसे मुखर देशभक्तिपूर्ण कार्यवाही है । देश नदी, पहाड़, जंगल, खँडहर मंदिर, वीरान मस्जिद, कपोल कल्पनाओं, विलुप्ति के कगार पर खड़ी कठिन और अपाठ्य भाषाओं में लिखी इत-उत की किताबों, पवित्र और अपवित्र जानवरों का समुच्चय नहीं होता । ऐसा होता तो पृथ्वी का सबसे बड़ा देश अंटार्कटिका, सौरमंडल का सबसे विराट देश जुपिटर को होना चाहिए था । देश बनाता है उस भूगोल पर बसी जनता से । भारत देश के शक्तिशाली होने का अर्थ है 120+ करोड़ जनता का पुष्ट, स्वस्थ और कार्यक्षम होना । 2 सितम्बर की 12 मांगे इसी ताकत को हासिल करने की मांगें हैं ।
● आंकड़ों के बोझ के बिना भी देखा और समझा जा सकता है कि हाल के वर्षों में रोजगारहीन (जॉबलैस) वृध्दि,  रोजगारछीन (जॉबलॉस) वृध्दि बन कर रह गयी है । नोटों की गड्डी मोटी होने के बावजूद रियल वेज घट गयी है ।  मतलब उन नोटों की खरीदने की ताकत सिकुड़ गयी है । गाँव में रहने वाले 70 फीसद और शहर में रहने वाले 65 फीसद हिन्दुस्तानी आज से 40 वर्ष पहले जितना खाते थे, अब उससे काफी कम खा पा रहे हैं । यह असाधारण और चिंताजनक गिरावट है । हड़ताली मजदूर संगठन इसके समाधान के लिए मार्क्स से सीखने की नहीं , 1930 में पूंजीवाद को पुनर्जीवन देने वाले अर्थशास्त्र कीन्स के पुनर्पाठ की सलाह लेकर आये हैं । जिसने रोजगारसृजन और आमदनी वृध्दि को अर्थव्यवस्था की संजीवनी और प्राणवायु बताया था ।
● एफडीआई, चौतरफा विदेशी निवेश पर मयूरनृत्य कर रहे हुक्मरानो को लातिनी अमरीकी देशों के विकल्प को समझाना तनिक दूर की बात होगी । मगर इन्हें चाणक्य उर्फ़ कौटिल्य बाबा की हिदायत याद दिलाने में हर्ज़ नहीं है जिन्होंने कहा था कि राज्य के बाहर के व्यापारियों को शह देना खुद अपनी नींव को कमजोर करना होता है ।
● बात में बात में रणभेरी फूंकते, युद्दोन्माद के झाँझ मंजीरे लिए घूमते इन स्वयम्भू राष्ट्रभक्तो ने पता नहीं मैकियावली पढ़ा है कि नही जिसके मुताबिक़ असली युध्द शांतिकाल में, खेतों, उद्योगों और आर्थिक संस्थानों में लड़ा जाता है । जो आतंरिक शक्ति की मजबूती के मोर्चे की अनदेखी कर देते हैं वे युध्द के एलान से पहले ही राज्य को  हार की कगार पर पहुँचा देते हैं । इस लिहाज से 2 सितम्बर हड़ताल एक प्रकार से एक पखवाड़े बाद पड़ने वाला 15 अगस्त है, जिस दिन देश का मजदूर लालकिले की जगह जनपथ पर सलामी लेकर मुल्क को बचाने की शपथ लेगा ।
● 1991 में, यही श्रम संगठन थे जिन्होंने कहा था कि सारे खजाने और नवरत्नों को हथिया कर,  आईएमएफ, विश्व बैंक और डब्लूटीओ के ठग जिस सबसे सुन्दर और महंगे परिधान को बनाने का दावा कर रहे हैं , उसे पहनकर राजा निर्वस्त्र और नग्न ही दिखेगा । आज वह आशंका मैन्युफैक्चरिंग, निर्यात, कृषि, रोजगार सृजन, ग्रीन फील्ड विदेशी निवेश यहां तक कि सटोरिया मार्केट तक में पूंजी आगमन में सतत गिरावट के रूप में जाहिर उजागर हो कर दिखाई दे रही है । जरूरत इस फिसलन को थामने की है न कि लगातार हारते जुआरी की तरह ब्लाइंड पर ब्लाइंड खेलने की ।
● आभासीय आंकड़ों से गढ़ी जीडीपी की झीनी चदरिया से यह नग्नता नहीं ढंकेगी, डॉलर अरबपतियों की कुकुरमुत्ता बागवानी से सवा सौ करोड़ आबादी हरियाली चादर नहीं ओढ़ सकेगी । जरूरी है झटके के साथ कुमार्ग को छोड़ राह पर आना । विनाशरथ पर सवार हुक्मरानो के आगे 2 सितम्बर को खड़े होकर 15 से 20 करोड़ मजदूर कर्मचारी ट्रैफिक हवलदार की भूमिका निबाहेंगे ।
● समाजवाद ने भले उसे उसके सच्चे शीर्ष पर पहुंचाया हो मगर सभ्य समाज में लोकतंत्र को पूंजीवाद, अपनी जरूरत की पूर्ती के लिए, लाया था । उन्हें पता था कि गुलामी के अहसास से थके मांदे शरीर और मस्तिष्क न रचनात्मक सृजन कर सकते हैं न गुणवत्ता दे सकते हैं । नतीजे में श्रम आंदोलन ने अनगिनत अधिकार जीते, श्रम अधिनियम अस्तित्व में आये । उदारीकरण के शाप से मन्त्रबिद्द सरकारें इन्हें काँटछांट कर छीनने पर आमादा है । गुलाम आबादियों के कन्धों पर न तो विकास की मीनारें तनती है न  नये समाज खड़े होते हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई इस शर्त से वाकिफ थी । भगत सिंह ने असेम्बली पर बम फैंकने का दिन वही चुना था जिस दिन मजदूरों के हकों को कुचलने वाला ट्रेड डिस्प्यूट बिल और लोकतांत्रिक विरोध पर अंकुश लगाने वाला पब्लिक सेफ्टी बिल रखा जा रहा था ।
● 2 सितम्बर इसी तरह की ज्यादा बड़ी कार्यवाही है ।
जो दीवार पर लिखी इबारत पढ़ लेते हैं वे मील के पत्थरोँ के रूप में याद किये जाते हैं । जो नहीं पढ़ते उन्हें इतिहास टनों मिट्टी धूल के नीचे दफ़्न कर देता है । यह हुक्मरानों को चुनना है कि वे इतिहास के किस पन्ने पर रहना चाहते हैं ।
[9/2, 7:08 AM] kailash somkuwar: I
[9/2, 7:10 AM] kailash somkuwar: देशव्यापी आम हड़ताल को तोड़ने के षड़यंत्र को विफल करो! : तपन सेन, सीटू महासचिव
● केन्द्रीय श्रम मंत्री श्री बण्डारु दत्तात्रेय ने 31 अगस्त को प्रातः 9.00 बजे ‘‘मजदूरों की निष्पक्ष आय और सामाजिक सुरक्षा के प्रति एन.डी.ए. सरकार की प्रतिबद्धता’’ के नाम से एक प्रेस बयान मीडिया और प्रेस को भेजा।
● सीटू इस बयान को सोचा समझा ‘‘मिथ्या अभियान’’ मानता है, ताकि विभ्रम पैदा करके 2 सितम्बर 2016 की देशव्यापी आम हड़ताल को तोड़ा जा सके, जबकि सभी श्रेणी के मजदूर एवं कर्मचारी हड़ताल में शामिल होने की तैयारी कर चुके हैं।
● श्रम मंत्री ने केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के न्यूनतम् वेतन में 42ः वृद्धि का दावा किया है। पूरे देश के मजदूरों के लिए वैधानिक न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- से कम नहीं घोषित करने की माँग करने वाले मजदूरों और ट्रेड़ यूनियनों के लिए इसका क्या अर्थ है? उसका अर्थ है कि ‘‘सी’’ केटेगरी के क्षेत्र में न्यूनतम् वेतन रु० 18,000/- और सानुपातिक वृद्धि करके ‘‘बी’’ केटेगरी के लिए रु० 22,320/- तथा ‘‘ए’’ केटेगारी के लिए रु० 26,560/- किया जाना चाहिए। सरकार ने ‘‘सी’’, ‘‘बी’’ और ‘‘ए’’ केटेगरी के लिए क्रमशः रु० 9,100/-, रु० 11,362/- और रु० 13,598/- का प्रस्ताव किया है जो ट्रेड़ यूनियनों की माँग का आधा भी नहीं है। ज्ञातव्य हो कि बी.एम.एस. सहित सभी केन्द्रीय ट्रेड़ यूनियनें संयुक्त रुप से अपनी माँग सरकार के समक्ष पेश की है, और पिछले 5 वर्ष से उठाती आ रही हैं, और अभी हाल ही में 29 अगस्त 2016 को आयोजित न्यूनतम् वेतन सलाहकार समिति की मीटिंग में भी यही माँग पूरे जोर-शोर से उठायी गयी है। केन्द्र सरकार द्वारा भी स्वीकार्य फार्मूले पर आधारित माँग का मजाक कोई भी यूनियन कैसे बर्दाश्त कर सकती है? बी.एम.एस. दबाव में इस मजाक को भी एक ‘‘ऐतिहासिक उपलब्धि’’ मान सकती है, लेकिन अन्य यूनियनें नहीं।
● और इस प्रस्ताव से कौन लाभन्वित हो रहा है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय क्षेत्र के मजदूरों के लिए है, जो कि मंत्री के अपने ही बयान के अनुसार ही लगभग 70 लाख हैं। यदि इसे लागू भी कर भी दिया जाए तो यह देश के कुल गैर-कृषि मजदूरों के 1 प्रतिशत को भी लाभ नहीं पहुँचाऐगा। देश के शेष 99ः मजदूरों के लिए यह पूरी तरह से अर्थहीन है। क्या मंत्री के पास उनको देने के लिए कोई जबाव है?
ट्रेड़ यूनियनें लम्बे अरसे से पूरे देश में न्यूनतम् वेतन को कानूनन् लागू करने की व्यवस्था की माँग करती आ रही हैं। बहुत ही मामूली से वृद्धि वह भी मजदूरों के एक छोटे हिस्से के लिए, को लेकर इतना शोर-शराबा करना, बहुमत श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता नहीं धोखा-धड़ी ही है।
●माननीय मंत्री ने घोषणा की है कि अगले तीन साल तक भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में मालिकान के अंशदान का भुगतान सरकार करेगी। भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की जिम्मेदारी का बोझ सरकारी खजाने पर डालने की क्या आवश्यकता है? लेकिन यह एक सरकार है जिसने काॅरपोरेटस् को करांे का भुगतान न करके सरकारी खजाने को रु० 5 लाख करोड़; और बैंकों से लिए गए रु० 8.5 लाख करोड़ के कर्ज का भुगतान न करके चूना लगाने की इजाजत दे रखी है। सरकार अप्रेन्टिसों की ट्रेनिग के मूल्य का एक हिस्सा मालिकान को भुगातन करती है। और भविष्य निधि और पेंशन फण्ड में भुगतान करने की मालिकान की कानूनन् जिम्मेदारी भी अब अगले तीन साल तक के लिए सरकार ले रही है जिसका भुगतान वह अपनी जेब से नहीं सरकारी खजाने से करेगी। इसे नहीं तो किसे सरकारी खजाने की लूट कहा जाए? इन राष्ट्र विरोधी कदमों को ‘जनकल्याण और राष्ट्र निर्माण के लिए कटिबद्धता’ कहना जनता की आँखों में धूल झौंकना ही तो है।
● सीटू को पूरा भरोसा है कि इस प्रकार की धोखा-धड़ी मजदूरों को अपने संघर्ष के रास्ते हटाने में सफल नहीं हो सकती है। हड़ताल जारी रहेगी।
                       
                       
                                        

1 comment:

  1. Sir. This going on good but whr in LDC gp & minimum salary hike.

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